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रिकार्ड मतों से जीतकर संसद पहुंचने वाले Kishan Kapoor बीजेपी की नजरों में क्यों हुए बागी, सिलसिलेवार पढ़े

धर्मशाला। ठीक एक साल पहले किशन कपूर (Kishan Kapoor) रिकार्ड मतों से जीत दर्ज कर लोकसभा (Loksabha) में पहुंचे। बीजेपी (BJP) में चर्चा का केंद्र बने और फिर यकायक ही पार्टी प्लेटफार्म से गायब होने लगे। आज जिस वक्त केंद्र की मोदी सरकार अपने सत्ताकाल के एक साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है,ठीक उसी वक्त हिमाचल के बीजेपी विधायकों व पार्टी पदाधिकारियों ने कपूर को बागी (Rebel)का दर्जा दे डाला।

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ये वही,कपूर हैं जो किसी वक्त हिमाचल (Himachal) में बीजेपी के पितामह कहलाने वाले शांता कुमार के बेहद करीबी हुआ करते थे। आज वह पार्टी में असंतुष्ट चल रहे नेताओं के टोले का हिस्सा बन चुके हैं। यही कपूर कभी शांता कुमार (Shanta Kumar) के करीबी रहते हुए धूमल शासनकाल में भी बागी कहलाए थे। बाद में मुख्यधारा में लौटे तो राजनीतिक सफर पटरी पर आने लगा था, धूमल (Dhumal) से भी कुछ-कुछ नजदीकीयां बनने लगी थी। लेकिन धूमल गुट के हाशिए पर जाने से कपूर अलग-थलग नजर आने लगे थे।

जमकर बहाए थे आंसू

हिमाचल में विधानसभा चुनाव (Vidhansabha Election) से पहले किशन कपूर का धर्मशाला से पार्टी ने टिकट काट दिया तो,उन्होंने जमकर आंसू बहाए, निर्दलीय लड़ने का मन बना लिया, पार्टी ने निर्णय बदला और कपूर को टिकट थमा दिया। विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करवाई,तो जयराम कैबिनेट (Jai Ram Cabinet) में बड़ी मुश्किल से अंत समय में जगह मिल पाई। उसके बाद विभाग मिलने की बारी आई तो कपूर का पसंदीदा परिवहन ना देकर उन्हें खाद्य आपूर्ति विभाग (Food and civil supply department) थमा दिया गया।

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मन-मसोस कर कपूर चुपचाप बैठ गए। अभी कुछ ही समय निकला था कि कपूर को संसदीय चुनाव लड़वाए जाने की चर्चाएं शुरू हो गई। ना चाहते हुए भी कपूर को कांगड़ा-चंबा संसदीय सीट (Kangra-Chamba Parliamentary Seat) से बीजेपी ने प्रत्याशी बना डाला। कपूर ने पार्टी के समक्ष अपने बेटे को राजनीति में उतारने की बात रख डाली। उन्होंने बार-बार पार्टी से इस बात का आश्वासन लेना चाहा कि लोकसभा चुनाव जीतने के बाद धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र से उनके बेटे को उपचुनाव (By election) में प्रत्याशी बनाया जाना चाहिए। पार्टी ने उन्हें पुचकार कर संसदीय चुनाव में उतार दिया तो कपूर ने मोदी (Modi) लहर में 477623 मतों से अपने प्रतिद्वंद्वी को पटकनी दे डाली।

झटके पर झटके मिलते गए

कपूर संसद में पहुंच गए, सोचते रहे कि इतने भारी मतों से जीत दर्ज कर आए हैं ,हो सकता है कि मोदी मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री के तौर पर शपथ दिलवा दी जाए। वहां भी अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) का नंबर लग गया। कपूर को यहां भी हाथ कुछ लगता नहीं दिखा तो उन्होंने बेटे के लिए धर्मशाला (Dharmshala) उपचुनाव में पैरवी करनी शुरू कर दी। पार्टी ने कपूर को दरकिनार कर यहां से युवा को प्रत्याशी बना दिया।

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कपूर की नाराजगी बढ़ती चली गई। उपचुनाव में उन्हें प्रभारी तक नहीं बनाया गया, वह प्रचार से ही गायब हो गए। सीएम जयराम ठाकुर ने खुद मोर्चा संभाल लिया,पार्टी का नया चेहरा भारी मतों से जीत ही नहीं बल्कि कांग्रेस प्रत्याशी का जमानत जब्त करवाकर विधानसभा में पहुंच गया। कपूर के लिए तो ये झटके पर झटके वाली ही बात दिखी। वह पार्टी के कार्यक्रमों से दूर होने लगे,बीजेपी मंडल के गठन में भी उनकी अनदेखी ही नहीं बल्कि उनकी पूछ तक नहीं हुई। उनके समर्थक बाहर कर दिए गए।

पार्टी प्लेटफार्म से गायब होते चले गए

पार्टी से मुखर होते जा रहे कपूर के लिए एक मौका और दिखा कि सतपाल सत्ती (Satpal Satti) का बतौर पार्टी प्रदेशाध्यक्ष कार्यकाल पूरा हो रहा है, उसी पद के लिए कुछ हाथ-पैर मार लिए जाएं। पार्टी ने प्रदेशाध्यक्ष पद पर डॉ. राजीव बिंदल (Dr. Rajeev Bindal) का नाम तय कर दिया। कपूर फिर से खाली हाथ हो गए,पार्टी प्लेटफार्म पर हिमाचल में कपूर ना दिखने वाला चेहरा बनने लगे। हालत ये हो गई कि धर्मशाला में भी वह पार्टी कार्यक्रमों से बाहर हो चले। करते-करते कुछ माह में ही  डॉ. बिंदल को इस्तीफा देना पड़ा तो कांगड़ा में धूमल समर्थकों की जुगलबंदी में कपूर भी शामिल हो गए।

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मकसद यही था कि इस मर्तबा किसी तरह पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का पद हासिल कर लिया जाए। कांगड़ा के पीडल्ब्यूडी रेस्ट हाउस  (PWD Rest House Kangra) में बैठे अभी कुछ घंटे भी नहीं बीते थे कि कांगड़ा-चंबा संसदीय क्षेत्र के पार्टी विधायकों (Party MLAs of Kangra-Chamba parliamentary) ने उन्हें बागी का दर्जा दे डाला। षडंयत्रकारी की संज्ञा दे दी। यानी साल भर में ही कपूर बीजेपी के अंदर कहां से कहां पहुंचा दिए गए। अब उन्हीं कपूर के खिलाफ कार्रवाई की आवाज उठनी शुरू हो गई है।

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