
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट ने प्रदेश में लीज प्रणाली को खत्म करने के आग्रह को लेकर दायर की गई याचिका मे मुख्य सचिव व प्रधान सचिव (राजस्व) को नोटिस जारी किया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमथ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने कांगड़ा जिले के राकेश कुमार की जनहित याचिका पर मामले की सुनवाई की।
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याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि हिमाचल प्रदेश सरकार 99 सालों के लिए अपनी जमीन पट्टे पर देती है। ये प्रथा एकदम गलत है, क्योंकि इस तरह के पट्टे की मंजूरी का मतलब स्थायी रूप से अनुदान देना होगा। प्रार्थी ने आरोप लगाया है कि लाभार्थियों के कानूनी वारिसों को मूल पट्टेदार के पट्टे के अधिकार विरासत में मिलता है। यदि ऐसी व्यवस्था जारी रहती है, तो हिमाचल प्रदेश राज्य की पूरी भूमि बाहरी लोगों की हो जाएगी जाएगी और राज्य से संबंधित संसाधनों पर कब्जा कर लिया जाएगा।
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प्रार्थी ने याचिका में कहा कि कई लोगों ने इस तरह के पट्टों को आय के स्रोत में बदल दिया है। उदाहरण के लिए पालमपुर के एक अस्पताल को प्रति वर्ष 1 रुपये के टोकन पर पट्टे पर दिया गया है, जबकि इसके साथ भूमि की सीमा लगभग 60 कनाल है। प्रार्थी ने कोर्ट को बताया कि इस बात का पता लगाने की जरूरत है कि ऐसे पट्टों से सरकार को कितनी आय हो रही है और लाभार्थियों को कितनी आय हो रही है। लाभार्थी कितना कर सरकार को अदा कर रहे हैं। इसके अलावा यह भी पता लगाने की जरूरत है कि क्या लीज पर दी गई जमीन के 99 साल पूरे होने के बाद का कोई उदाहरण है।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से आग्रह किया है कि सरकारी भूमि के ऐसे स्थायी पट्टे देने की प्रथा और प्रणाली को तत्काल समाप्त कर दिया जाए, ताकि ‘देवताओं की भूमि’, यानी हिमाचल प्रदेश की प्राचीन धरोहर को संरक्षित किया जा सके। मामले पर दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी।
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