पंकज नरयाल, धर्मशाला। तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा (Tibetan spiritual leader Dalai Lama) ने कहा कि भवचक्र स्वभाव से सिद्ध नहीं है, जिसे भी हम देख रहे हैं जिस चीज को ग्रहण करते हैं एक प्रकार से हम उसमें खो जाते हैं। जो स्वभाव से सिद्ध नहीं है तो बहुत ज्यादा उससे लगाव रखने की आवश्यकता नहीं है। सभी लोग अच्छे व्यक्ति बनें। लोगों का हित करें। लोगों के प्रति करुणा रखें। शून्यता व बौद्धचित का अभ्यास करना चाहिए।
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यह बातें शुक्रवार को तिब्बती धर्मगुरू दलाईलामा ने अपने दो दिवसीय टीचिंग्स (Two Day Teaching) के पहले दिन कही। दलाई लामा ने कहा कि दुनिया में सभी लोग सुख चाहते हैं। इसके लिए करुणा जरूरी है। करुणा बुद्धचित व शून्य का अध्ययन करेंगे तो इस बात को समझ सकेंगे तो दुख से निकल सकते हैं। बाहरी चीजों को नहीं देखता है अपने चित को समझना है कि हमारे भीतर के कलेश स्वभाव से सिद्ध नहीं है। इसके लिए करुणा बहुत जरूरी है। बता दें कि मैक्लोडगंज (Mcleodganj) स्थित दलाईलामा टेंपल में कोविडकाल के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से जनता के नाम उन्होंने उपदेश दिया, जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में दलाईलामा की टिचिंग्स कहा जाता है। दलाईलामा के इन उपदेशों से देश विदेश में रहने वाले उनके अनुयायियों में बेहद खुशी की लहर है। देश-विदेश से सैकड़ों अनुयायी आने भी शुरू हो गये हैं। आज दलाईलामा अपने निवास स्थान शुगलगखांग से टेंपल (Dalai Lama Temple) तक पैदल ही आये। इस दौरान देश और दुनिया भर से आये लोगों का उन्हें देखने के लिये जमाबड़ा लगा रहा।
दलाईलामा ने भी आए हुए अपने तमाम अनुयायियों को निराश नहीं किया और सबका हाथ हिलाकर अभिवादन किया। इतना ही नहीं दलाईलामा ने अपने मंदिर की सबसे ऊपरी मंजिल से मंदिर के नीचे सड़क पर खड़े हुए मंदिर की ओर टकटकी लगाए देख रहे अनुयायियों तक का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। उसके बाद प्रिचिंग स्थान पर बैठकर अपने सभी अनुयायियों का उन्हें अभिवादन करते हुए बौद्ध धर्म की शिक्षा पर बात की और दुनिया में शांति पर अपने विचार प्रकट किये।
टिचिंग के बाद लोगों में उत्साह
इस दौरान आइरलैंड से आई शीना ने बताया कि ये उनके लिये सौभाग्य की बात है जो दलाईलामा की प्रिचिंग में उन्हें आने का मौका मिला। ऐसा सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि वो बेहद उत्साहित हैं दलाईलामा दुनिया भर में एक धार्मिक नेता के तौर पर जाने जाते हैं। वहीं वियतनाम से आई मून ने कहा कि उन्होंने दलाईलामा को वीडियो में ही देखा था और उनके उपदेशों से बहुत प्रभावित हुई। उसके बाद में लंबे समय तक वियतनाम में ही मैडिटेसन करती रही। मगर मैं एक बार दलाईलामा और उनकी टीचिंग्स को सुनने के लिए यहां आना चाहती थी, और आज उनका सपना मुकम्मल हो गया है, वो बेहद खुश है।
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