
ओबीसी बाहुल्य (OBC Dominated) सीट यानी मां बज्रेश्वरी देवी (Maa Bajreshwari Devi) के चरणों वाली कांगड़ा सीट (Kangra Seat) पर रोचक ये है कि दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी-कांग्रेस के कैंडिडेट दल बदलकर इधर से उधर हुए हैं। यानी जो कांग्रेस में था वो बीजेपी तो बीजेपी वाला कांग्रेस में जा बैठा। दोनों को ही दोनों दलों ने कैंडिडेट भी बना डाला। यूं तो वर्तमान में कहा जाए तो ये सीट बीजेपी के पास है,ये अलग बात है कि (BJP Candidate Pawan Kajal) बीजेपी के कैंडिडेट पवन काजल वर्ष 2017 का चुनाव कांग्रेस (Congress) के नाम पर जीते थे। लेकिन चुनाव से पहले उन्होंने अबकी मर्तबा बीजेपी ज्वाइन कर ली। इस नाते ये सीट अब बीजेपी के कब्जे में हैं।
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ओबीसी समुदाय (OBC Community) से ताल्लुक रखने वाले बीजेपी कैंडिडेट व सिटिंग विधायक पवन काजल की जमीनी स्तर पर मतदाताओं के बीच मजबूत पकड़ है। काजल की इसी सियासी पकड़ के कारण वह 2012 में निर्दलीय और 2017 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़कर लगातार दो बार विधायक बन चुके हैं। कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र ओबीसी बाहुल्य होने के कारण हर चुनाव में ओबीसी समुदाय अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहां ओबीसी में चौधरी बिरादरी का ही दबदबा है। वर्ष 2017 में कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की थी। 2017 में यहां कुल 43.70 प्रतिशत वोट पड़े थे। उस वक्त इस सीट से कांग्रेस के पवन काजल ने जीत हासिल की थी। पवन काजल ने बीजेपी के संजय चौधरी (Sanjay Chaudhary of BJP) को 6,208 वोटों के अंतर से हराया था।
इस बार कांग्रेस ने इस सीट से ओबीसी से ही ताल्लुक रखने वाले सुरेंद्र काकू (Surendra Kaku) को अपना कैंडिडेट बनाया है। काकू बीजेपी से दल बदलकर कांग्रेस में हाल ही में आए हैं। मूल रूप से वह कांग्रेसी ही रहे हैं,वर्ष 2003 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था। वह विधायक बनने के साथ-साथ कुछ समय के लिए मुख्य संसदीय सचिव भी रहे। उसके बाद वह चुनाव नहीं जीत पाए। पिछली मर्तबा कांग्रेस ने पवन काजल को टिकट दिया तो वह चुनाव नहीं लड़े । उसके बाद वह हिमाचल में बीजेपी की सरकार बनने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए। टिकट बीजेपी से ही चाह रहे थे इस मर्तबा,लेकिन पवन काजल ने पलटी मारी तो काकू को भी मजबूरी में पलटी मारनी पडी। इस तरह काकू की कांग्रेस में वापसी हुई और पार्टी ने उन्हें टिकट दे दिया।
इस सीट पर कांग्रेस को किसी तरह कोई बागी का खतरा नहीं है। लेकिन बीजेपी के पवन काजल के लिए ओबीसी समुदाय के ही कुलभाष चौधरी (Kulbhash Chaudhary) नाराज होकर चुनौती देने मैदान में उतर गए हैं। कुलभाष बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। ऐसे में कांगड़ा में मुकाबला आने वाले समय में त्रिकोणीय भी हो सकता है। देखना होगा कि अब इन तीनों ओबीसी में कौन किस पर भारी पडता है।
2017 पवन काजल (कांग्रेस)
2012 पवन काजल (निर्दलीय)
2007 संजय चौधरी (बसपा)
2003 सुरेंद्र काकू (कांग्रेस)
1998 विद्या सागर चौधरी (बीजेपी)
1993 दौलत राम (कांग्रेस)
1990 विद्या सागर (बीजेपी )
1985 विद्या सागर (बीजेपी)
1982 विद्या सागर (बीजेपी)
1977 प्रताप चौधरी (जेएनपी)
1972 हरिराम (कांग्रेस)
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