कोरोना वायरस ने लोगों की जिंदगियों में कई तरह से दुखों को भर दिया है।इस बिमारी से बचाव को लेकर सरकार की ओर से कई तरह के कार्य किए जा रहे है जिसके बीच लोगों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसी मुश्किलों के बीच लॉकडाउन के बाद कई लोगों को भूखे रहकर रातें बीतानी पड़ी और कोई अपनी माता की मौतके बाद उनकी अस्थियों को हरिद्वार में गंगा नदी में प्रवाहित करने से वंचित रह गया।
वीडियो अपलोड की
शहरमें रहकर पढ़ाई करने वाले चार लोगों कोचार दिनभूखे-प्यासे कमरे में रहना पड़ा। जब उनसे भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो उन्होंने अपना एक वीडियाे बना कर इंटरनेट पर डाल दिया।
जिसमें उन्होंने बताया कि लॉकडाउन की वजह से वे अपने पीजी के एक कमरे में बंद है। उनके पास खाने के लिए दाना भी नहीं है।
राजस्थान से मदद करवाई गई
शहर से 1200 किलोमीटर दूर राजस्थान के रहने वाले युवकों की ओर से यह वीडियो अपलोड किया गया तो यह वायरल होता हुआ राजस्थान के रेवेन्यू मिनिस्टर हरीश चौधरी तक पहुंचा। जिन्होंने वहां से चंडीगढ़ के कांग्रेस भवन में फोन कर युवकों तक मदद पहुंचाने के लिए कहा गया। उसके बाद मोहाली के राजवंत राय शर्मा की डयूटी लगाई गई। शर्मा की ओर से युवकों से संपर्क कर पहले उन्हें खाना खिलाया गया और बाद में एसडीएम खरड़ की मदद से युवकों तक खाने-पीने का सामान ,राशन व गैस चुल्हा-सिलेंडर पहुंचाया गया।
युवकों को खाने का सामान दिया गया
लॉकडाउन के बाद बंद हो गई थी मेस- खरड़ के स्वराज एंक्लेव में किराए पर रह रहे पुखराज पुराेहित ने बताया कि वे चंडीगढ़ में बैंक जॉब की तैयार करने के लिए आए हुए है। ऐसे में जब लॉकडाउन हो गया तो उनकी मेस बंद हो गई। कुछ दिन तक किसी तरह से कुछ खा पीकर गुजारा किया। अब जब खाने को कुछ नहीं रहा तो वीडियो डालने का काम किया। उन्होंने कहा कि उनके साथ तीन अौर लोग रहते है। उन्होंने कहा कि उन्हें खूद खाना बनाने के लिए इजाजत नहीं दी गई जिस कारण उन्हें भूखे रहना पड़ा।
मां की अस्थियां विसर्जन करने जाते युवक को उत्तराखंड बोर्डर पररोका
शहर के एक युवक काे उनकी मां की अस्थियां विसर्जन के लिए हरिद्ार जाते हुए उत्तराखंड बोर्डर में रोक लिया गया। युवक मनीष ने बताया कि उनकी माता दिशा रानी की मौत हो गई थी। उसके बाद उनकी अस्थियों को हरिद्वार लेकर जाने के लिए स्थानीय प्रशासन से सारे कागजात तैयार किए गए थे। मनीष ने बताया कि जैसे ही वे उत्तराखंड के बोर्डर पर पहुंचे तो उन्हें आगे जाने नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि वे वापस शहर में आकर अस्थियों को रखने के लिए लॉकर लेने गए तो वे सारे भरे हुए थे। ऐसे में उन्हें अपनी मां के अस्थि कलश पीपल के पेड़ पर टांगने पड़े।
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